By Ashish Baboo
Updated on August 17, 2019
हम एक दूजे की चाहत में, यूं गिरते हैं फिसलते हैं
गोया मोहब्बत फैली हो, जमीं पर काई सी बनकर
वो आती है औ आकर के, गले से फिर लिपटती है
औ बोसा रखती माथे पे, मेरी वो माई सी बनकर
क्या सच्चा है क्या झूठा है, कहां सुख है कहाँ दुख है
मेरा हाथ थाम जब चलती वो, मेरी परछाई सी बनकर
इक साड़ी में एक कयामत, वो लाती है जब आती है
बादल बनकर जुल्फें झूमे, कमर कोई खांई सी बनकर
मोहब्बत दिल मे रहती है, खुदा जैसी, कभी रब सी
कभी ईश्वर कभी अल्लाह, कभी फिर सांई सी बनकर
हम एक दूजे की चाहत में Reviewed by Gaurav Chhokar on August 17, 2019 Rating:
No comments: